न्यूज़रैप हिंदुस्तान टीम, पालम
सोमवार, 24 जून 2024 11:30 अपराह्न अगला लेख
मेदिनीनगर/पड़वा, हिटी। पूज्य संत श्री जीयाल स्वामी जी ने सोमवार को पालमवासियों से स्पष्ट कहा कि मूल्यों के बिना संस्कृति की स्थापना संभव नहीं है। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता विश्व में सबसे प्राचीन एवं समृद्ध है। आज भी पारंपरिक भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता अमर है। संस्कृति प्रत्येक राष्ट्र, जाति और समुदाय की आत्मा है। संस्कृति के माध्यम से व्यक्ति किसी देश, जाति या समुदाय के सभी रीति-रिवाजों को समझता है और उसकी सहायता से उसके आदर्श, जीवन मूल्य आदि निर्धारित करता है।
पालम जिला मुख्यालय शहर मेदिनीनगर के सिंगला क्षेत्र में उत्तरी खेल एवं अमानत नदी के संगम पर चातुर्मास व्रत 2024 पर विराजमान पूज्य संत श्री जियाल स्वामी जी ने कहा कि संस्कृति का सरल अर्थ है संस्कार, सुधार, परिष्कार शुद्धिकरण। संस्कृति का दायरा सभ्यता से कहीं अधिक व्यापक और गहरा है। सभ्यता की नकल तो की जा सकती है, परन्तु संस्कृति की नकल नहीं की जा सकती। सभ्यता वह है जो हम बनाते हैं, और संस्कृति वह है जो हम हैं। भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक संगठित रूप वैदिक काल में मिलता है। वेद विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ माने जाते हैं। भारतीय संस्कृति अपने आरंभ से ही अत्यंत महान, मिश्रित, जीवंत और जीवंत रही है, जो जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक प्रवृत्तियों का अद्भुत सामंजस्य प्रदर्शित करती है।
पूज्य संत ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीय विचारकों ने पूरे विश्व को एक परिवार माना है। इसका कारण उनकी उदारवादी सोच है। हमारे विचारकों का उदारचरितानां से लेकर वसुधैव कुटुंबकम् के सिद्धांत पर गहरा विश्वास रहा है। वस्तुतः शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का विकास ही संस्कृति की कसौटी है। भारतीय संस्कृति इस कसौटी पर बिल्कुल खरी उतरती है। आश्रम पद्धति के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है। प्रवचन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री व पूर्व वन पदाधिकारी उमाशंकर सिंह व अन्य श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
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