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Maharashtra Islam History Explained; Alauddin Khilji Vs Yadav Raja | Mughal Aurangzeb | खिलजी ने कृष्ण के वंशजों को हराया: नौकर ने खड़ा किया महाराष्ट्र का बहमनी साम्राज्य, क्या है चांद बीबी का किस्सा


26 फरवरी 1296। महाराष्ट्र के यादव राजा रामचंद्र किसी खतरे से अनजान अपने महल में बैठे थे। उनका बेटा सिंहन एक बड़ी सेना लेकर राजधानी देवगिरी (आज का दौलताबाद) से बाहर गया हुआ था। इसी बीच अलाउद्दीन खिलजी 8 हजार सैनिकों के साथ देवगिरी आ धमका। कई इतिहासकार

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वरिष्ठ पत्रकार और इतिहासकार गिरीश कुबेर अपनी किताब ‘द रेनेसां स्टेट’ में लिखते हैं, ‘यादवों ने लंबे समय से कोई बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी थी और अलाउद्दीन की सेना तेजी से हमला करने के लिए कुख्यात थी। उसे किला तोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। खिलजी की सेना ने देवगिरी को खूब लूटा। उसके देवगिरी छोड़ने से पहले सिंहन सेना समेत लौट आया।’

खिलजी की फौज हारने वाली थी, तभी उसने अफवाह उड़ाई कि दिल्ली से बीस हजार घुड़सवारों की एक और सेना आ रही है। खबर झूठी थी, लेकिन इसने सिंहन की सेना के पैर उखाड़ दिए। सैनिक जंग का मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए। पहली बार था जब किसी मुस्लिम हमलावर ने दक्कन पर जीत हासिल की थी। महाराष्ट्र में बाहरी हमलावरों की शुरू की गई मारकाट अगले 350 सालों तक जारी रही।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भास्कर लाया है महाराष्ट्र के इतिहास, युद्ध, राजनीति और इंपॉर्टेंस को समेटे 3 एपिसोड की स्पेशल सीरीज- महाराष्ट्र की कहानी। आज पहले एपिसोड में महाराष्ट्र के बनने, शुरुआती हिंदू राजाओं के शासन और इस्लाम के फैलने की कहानी…

महाराष्ट्र पर सबसे पहला शासन सातवाहन वंश का माना जाता है। हालांकि, छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शिशुनाग वंश ने करीब 150 साल शासन किया। शिशुनाग के बाद नंद वंश और फिर चंद्रगुप्त मौर्य ने इसे अपने साम्राज्य में मिलाया। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु कहे जाने वाले कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में अश्मक नाम की जगह के बारे में लिखा है, जो आज के महाराष्ट्र का नांदेड़ जिला है।

हालांकि कुछ पौराणिक कहानियों में शिशुनाग वंश से पहले भी महाराष्ट्र के इलाके और प्राचीन हिंदू धर्म का विवरण मिलता है-

उत्तर में आर्यों की जमीन और दक्षिण के द्रविड़ों के बीच का इलाका महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र संस्कृत से बनी प्राकृत भाषा बोलने वाले लोगों की जमीन थी। ये लोग दक्कन के पठार के पश्चिम और विंध्य के पहाड़ों के बीच रहते थे। गोदावरी और कृष्णा नदी के किनारे पर होने के चलते ये जमीन उपजाऊ थी और यहां कपास की खेती की जाती थी।अपरांत यानी आज का कोंकण, उत्तर में लता यानी गुजरात तक और दक्षिण में गोपाकपट्टनम यानी गोवा तक महाराष्ट्र के तटीय इलाके थे। एक बड़ी पर्वत-श्रृंखला सह्याद्रि तटीय इलाके को मैदान से अलग करती थी। बंदरगाहों तक पहुंचने के लिए व्यापारियों को इसे पार करना पड़ता था। माना जाता है कि भारत में घोड़े नहीं होते थे। गुजरात और मालवा के रास्ते घोड़ों को मध्य एशिया और फारस (ईरान) से महाराष्ट्र लाया गया था।कहा जाता है कि गोदावरी नदी के किनारे ऋषि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या रहती थीं। वहीं, कृष्णा नदी की कहानी भगवान कृष्ण से जुड़ी है, जो आज पंढरपुर में भगवान विट्ठल के रूप में विराजमान हैं। उन्हें विष्णु के कृष्ण अवतार का एक रूप माना जाता है।रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण पंचवटी से किया था। यह पंचवटी आज के महाराष्ट्र के नासिक जिले में है। महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध देवता खांडोबा हैं। माना जाता है कि पुणे के जेजुरी के पहाड़ों पर आज भी खांडोबा रहते हैं। हर साल हजारों लोग खांडोबा के मंदिर पहुंचते हैं।परशुराम एक पुजारी थे, दक्कन के पठारी ब्राह्मणों ने जब उनका बहिष्कार कर दिया तो उन्होंने चिता की आग से ब्राह्मणों का शुद्धिकरण कर अपने शिष्य बनाए, जिन्हें चितपावन ब्राह्मण कहा गया। आगे चलकर यही ब्राह्मण मराठों के पेशवा बने और पुणे से भारत के बड़े इलाके पर शासन किया।एक कहानी मराठा शासन से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि तुलजापुर की देवी भवानी एक लड़के के सामने प्रकट हुईं और उसे तलवार दी। यह लड़का बड़ा होकर छत्रपति शिवाजी महाराज बना, जिन्होंने मुगलों के शासन के अंतिम और ब्रिटिश शासन के पहले के दौर में महाराष्ट्र और बाकी भारत के बड़े इलाके पर शासन किया।महाराष्ट्र का पहला ऐतिहासिक साक्ष्य तटीय रत्नागिरी इलाके में मिलता है। यहां करीब 12,000 साल पहले के विशालकाय जानवरों के चित्र पत्थरों पर उकेरे गए। अहमदनगर जिले के दैमाबाद में बैलगाड़ी और बर्तनों की आकृतियां यहां 3,000 साल पहले की बस्तियों का संकेत देती हैं।

सातवाहन महाराष्ट्र का पहला राजवंश माना जाता है, जिसकी राजधानी ‘प्रतिष्ठान’ या ‘पैठान’ नाम की जगह पर थी, जो आज का मराठवाड़ा है। यहां की मशहूर मराठी हैंडलूम की साड़ी का नाम भी पैठानी है। सातवाहन सम्राट सिमुक ने मगध के आखिरी शासक को मारकर सातवाहन वंश की नींव रखी थी। कुल 32 सातवाहन शासकों ने करीब 450 साल शासन किया। इस दौरान महाराष्ट्र के इलाके को भी अपनी भौगोलिक और सामाजिक पहचान मिली।

इतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि संस्कृत भाषा की एक शाखा महाराष्ट्री इस इलाके में बोली जाती थी, जिसके चलते इसका नाम महाराष्ट्र पड़ा। सातवाहन वंश के राजा हाल ने अपने दौर में गाथा सतसई नाम से महाराष्ट्री (प्राकृत भाषा) में महिलाओं की लिखी कविताओं का संकलन करवाया था। इसी प्राकृत भाषा से मराठी निकली, जो आज महाराष्ट्र की भाषा है। इसलिए गाथा सतसई (या महा सतसई) को मराठी की पहली किताब माना जाता है।

सातवाहनों के बाद महाराष्ट्र पर मूल रूप से आज के विदर्भ के इलाके के रहने वाले वाकाटक वंश के राजाओं का शासन रहा। वाकाटकों ने अपनी राजधानी आज के नागपुर के आसपास बनाई, अजंता और एलोरा की गुफाएं वाकाटकों के समय ही बनवाई हुई हैं।

वाकाटकों के बाद चालुक्य राजा पुलकेशिन प्रथम ने महाराष्ट्र पर शासन किया। सातवाहन और वाकाटक ब्राह्मण थे, जबकि चालुक्य क्षत्रिय राजा थे। छठी शताब्दी में पुलकेशिन प्रथम के उत्तराधिकारी पुलकेशिन द्वितीय ने सोने के सिक्के निकाले थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पुलकेशिन द्वितीय की आर्मी को ट्रेनिंग दी और प्रशासन के गुर सिखाए।

629 ईसवी में ह्वेनसांग भारत आया। बादामी चालुक्यों की दूसरी राजधानी मानी जाने वाले एलोरा में उसकी मुलाकात पुलकेशिन द्वितीय से हुई। पुलकेशिन ने हर्षवर्धन को हराया था।

629 ईसवी में ह्वेनसांग भारत आया। बादामी चालुक्यों की दूसरी राजधानी मानी जाने वाले एलोरा में उसकी मुलाकात पुलकेशिन द्वितीय से हुई। पुलकेशिन ने हर्षवर्धन को हराया था।

चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय की मौत के बाद महाराष्ट्र पर राष्ट्रकूटों का शासन शुरू हुआ। इनमें से राष्ट्रकूट राजा गोविंद तृतीय ने सबसे ज्यादा साम्राज्य विस्तार किया। 813 ईसवी में गोविंद तृतीय की मृत्यु हो गई। कहा जाता है उसके समय दक्कन के नगाड़ों की आवाज हिमालय से मलाबार तट तक सुनाई देती थी।

गोविंद तृतीय का बेटा अमोघवर्ष पिता की तरह योद्धा नहीं था। कन्नड़ और संस्कृत में उसने कई किताबें लिखीं और जैन धर्म अपनाया। इसके चलते शांतचित्त अमोघवर्ष को ‘दक्षिण का अशोक’ कहा गया। कर्नाटक के प्रसिद्ध जैन मंदिर उसी ने बनवाए। अमोघवर्ष के बाद कुल 7 राष्ट्रकूट राजा हुए।

इसके बाद महाराष्ट्र पर आज के कर्नाटक के कल्याणी (कलबुर्गी इलाके) से आने वाले चालुक्यों का शासन हुआ। 1076 से 1126 तक चालुक्य राजा विक्रमादित्य का शासन रहा। यह कन्नड़ साहित्य के लिए स्वर्णिम युग माना जाता है। इसी दौरान वीरशैव सम्प्रदाय की शुरुआत हुई, जो आज भी अस्तित्व में है।

कल्याणी चालुक्य वंश के दौरान ही आज के कर्नाटक के हासन जिले से होयसल राजवंश की शुरुआत हुई थी। कहा जाता है कि कृष्ण जब मथुरा छोड़कर गुजरात के द्वारका गए तो उनके साथ बड़ी तादाद में यादव भी गए थे।

1100 ईसवी के आसपास इन यादवों ने होयसल राजवंश की नींव रखी थी। यादवों ने महाराष्ट्र के आज के औरंगाबाद में स्थित दौलताबाद के किले को अपना गढ़ बनाया, देवगिरी उनकी राजधानी थी। नासिक और दक्षिणी भारत में आज भी यादव पाए जाते हैं। 1318 ईसवी तक यादव राजाओं ने महाराष्ट्र के एक बड़े इलाके पर शासन किया। छत्रपति शिवाजी की मां जीजाबाई खुद जाधव कुल से आती थीं, जो यादवों के वंशज थे।

जीजाबाई की पैदाइश महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में सिंदखेड़राजा नाम की जगह की है। उनके पिता लखुजीराव जाधव एक शक्तिशाली सामंत थे।

जीजाबाई की पैदाइश महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में सिंदखेड़राजा नाम की जगह की है। उनके पिता लखुजीराव जाधव एक शक्तिशाली सामंत थे।

वीके राजवाडे, डीआर भंडारकर जैसे कुछ इतिहासकार यादव वंश को पहला मराठा साम्राज्य मानते हैं। यादवों के शासनकाल में ही मराठी भाषा को राजदरबार की भाषा बनाया गया। हालांकि, महाराष्ट्र पर शासन करने वाला कोई भी राजवंश उत्तर भारत की तरफ नहीं बढ़ पाया या कहें कि दिल्ली पर शासन नहीं कर पाया।

कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और जज महादेव गोंविंद रानाडे ने अपनी किताब ‘मराठा ताकत का उदय’ में लिखा है,

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17वीं सदी में जो राजनीतिक सफलता शिवाजी ने पाई, वह 13वीं सदी के संत ज्ञानेश्वर के धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों का ही परिणाम थी।

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1296 में संत ज्ञानेश्वर ने समाधि ली थी। इसी साल दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति ने यादवों की राजधानी देवगिरी पर हमला कर दिया था। सिंहन को हराकर खिलजी की सेना ने देवगिरी में भयंकर मारकाट मचाई। जैसा हमने आपको शुरुआत में बताया कि एक झूठी अफवाह के चलते सिंहन की सेना ने खिलजी के आगे हार मान ली थी, इसके बाद रामचंद्र ने खिलजी के सेनापति मलिक काफूर को बड़ा खजाना देकर समझौता किया। सिर्फ 5 दिन के अंदर 200 साल पुराना यादव राजवंश घुटनों पर आ गया।

हालांकि, अलाउद्दीन के निशाने पर दिल्ली की सल्तनत थी, इसलिए सालाना एक तय रकम अदा करने की शर्त पर खिलजी वापस दिल्ली चला गया। इसके बाद 1307 और 1310 में भी मलिक कफूर ने दो बार देवगिरी पर हमला किया। रामचंद्र ने अलाउद्दीन की सरपरस्ती स्वीकार कर ली और सिंहन जंग में मारा गया। कुल 4 बार अलाउद्दीन ने महाराष्ट्र के यादव वंश को हराया।

1307 से लेकर 1321 तक मलिक कफूर ने अकेले ही पूरे दक्षिण भारत पर कब्जा कर लिया था। बाद के सालों में दिल्ली में सत्ता के लिए मारकाट मची। अलाउद्दीन को मलिक कफूर ने मारा, मलिक की हत्या अलाउद्दीन के बड़े बेटे मुबारक खिलजी ने की। मुबारक की हत्या सेना के प्रमुख मलिक खुसरू खान ने कर दी। खुसरू को मारकर गयासुद्दीन तुगलक खुद दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठ गया। गयासुद्दीन तब पंजाब के एक छोटे इलाके का गवर्नर था।

1351 ईसवी में गयासुद्दीन का भतीजा मुहम्मद बिन तुगलक गद्दी पर था। उसने दिल्ली के बजाय देवगिरी (दौलताबाद) को राजधानी बनाया। इस दौरान एलोरा के पास के इलाके का गवर्नर हसन गंगू हुआ करता था, जो शुरुआती समय में दिल्ली में गंगू नाम के एक ब्राह्मण का सेवादार हुआ करता था।

3 अगस्त 1347 को हसन गंगू ने मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ दक्कन में एक आजाद साम्राज्य की घोषणा कर दी। उसने महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के भी कुछ इलाके कब्जाए। हसन गंगू ने बाद में अपना नया नाम अलाउद्दीन बहमन शाह रख लिया था। इसलिए उसके साम्राज्य को बहमनी साम्राज्य कहते हैं।

1425 तक इसकी राजधानी एहसानाबाद (आज का गुलबर्गा) रही। बाद में मुहम्मदाबाद (आज के बीदर) को राजधानी बनाया गया। बहमनी साम्राज्य के करीब 200 साल के शासन में कुल 18 शासक हुए। 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में बहमनी साम्राज्य कमजोर हो चला था, शासक वर्ग में कई धड़े बन गए थे। आम मुसलमान भी शिया और सुन्नी में बंटे।

1518 ईसवी में बहमनी साम्राज्य के पतन के बाद दक्कन में पांच छोटे साम्राज्य बने। इन पांचों सल्तनतों के नाम थे- अहमदनगर में निजामशाही, बीजापुर की आदिलशाही, गोलकुंडा की कुतुब शाही, बीदर की बरीदशाही और बरार की इमादशाही।

दक्कन की पांचों सल्तनतों को इनके पहले सुल्तानों के नाम से जाना जाता है।

दक्कन की पांचों सल्तनतों को इनके पहले सुल्तानों के नाम से जाना जाता है।

1323 ईसवी में गयासुद्दीन ने वारंगल के काकतीय राजवंश के राजा को बंदी बना लिया था। कंपिली के दरबार में दो सगे भाई हरिहर और बुक्का मंत्री हुआ करते थे। दोनों भाग निकले और तुंगभद्रा नदी पार करके 1336 एक नया शहर बसाया। अपने गुरु विद्यारणे के नाम पर इसका नाम रखा- विद्या नगर। इसे बाद में विजयनगर कहा गया। आज हेरिटेज साइट में से एक हंपी कभी विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा हुआ करती थी।

हरिहर और बुक्का ने तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी हिस्से को मुसलमानों से आजाद करवाया। मदुरै जैसे तब के कई मुगलिया कब्जे के इलाके जीते। हरिहर और बुक्का के वंशजों ने भी साम्राज्य का विस्तार किया। बहमनी साम्राज्य के समांतर ही विजयनगर साम्राज्य भी खड़ा हो चुका था। बुक्का के वंशज राजा कृष्ण देवराय (1509-29) के दौर तक लगभग पूरा दक्षिण भारत विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा बन गया।

हरिहर और बुक्का ने 1336 में विजयनगर बसाया था। यह साम्राज्य 200 साल कायम रहा।

हरिहर और बुक्का ने 1336 में विजयनगर बसाया था। यह साम्राज्य 200 साल कायम रहा।

तुंगभद्रा और कृष्णा नदी के दोआब का इलाका बहुत उपजाऊ था। विजयनगर साम्राज्य के तहत आने वाले कोंकण इलाके में कई बंदरगाह भी थे, जिन पर बहमनी साम्राज्य की नजर थी। 1336 से 1565 में तालीकोटा के युद्ध तक बहमनी के सुल्तानों और विजयनगर के शासकों के बीच कम से कम 10 युद्ध हुए।

आखिरकार 1565 में बहमनी साम्राज्य से अलग होकर बनी पांचों सल्तनतों ने एक साथ विजयनगर पर हमला बोल दिया। विजयनगर की हार हुई। राजा का सिर एक विजेता ट्रॉफी की तरह नुमाइश के लिए दीवार पर टांग दिया गया।

15वीं सदी के खत्म होते-होते दिल्ली में मुगल बादशाह बाबर का शासन आ चुका था। इधर दक्कन की सल्तनतें आपस में लड़ रही थीं, ऐसे में मुगल बादशाह अकबर ने दक्कन में हमले का मौका देखा।

1600 ईसवी में अकबर ने अपने बेटे मुराद को अहमदनगर के किले पर हमला करने भेज दिया। अहमदनगर की निजामशाही तब हुसैन निजाम शाह की बेटी चांद बीबी के हाथों में थी। चांद बीवी ये जंग हार गईं और उन्होंने मुगलों के हाथों में पड़ने से पहले खुद की जान ले ली।

चांद बीबी ने मुगलों से पहली लड़ाई बहुत बहादुरी से लड़ी थी, लेकिन उन्हें समझौते में कुछ इलाके गंवाने पड़े। अगली लड़ाई में उन्होंने अपनी छाती में खंजर घोंप लिया।

चांद बीबी ने मुगलों से पहली लड़ाई बहुत बहादुरी से लड़ी थी, लेकिन उन्हें समझौते में कुछ इलाके गंवाने पड़े। अगली लड़ाई में उन्होंने अपनी छाती में खंजर घोंप लिया।

1626 में मुगलों ने अहमदनगर की निजामशाही पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। आगे चलकर अहमदनगर की निजाम शाही दो हिस्सों में बंट गई। एक पर मुगलों का शासन था और दूसरी पर बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह का शासन। 12 सितंबर 1686 को बीजापुर पर भी मुगल साम्राज्य काबिज हो गया।

बरार की इमादशाही यानी आज के महाराष्ट्र का विदर्भ और बीदर की बरीदशाही, दोनों ही छोटे साम्राज्य थे। बीदर को बाद में बीजापुर में मिला लिया गया और बरीदशाही के आखिरी सुल्तान अमीर बरीद तृतीय और उसके बेटों को बीजापुर की जेल में डाल दिया गया।

गोलकुंडा की कुतुबशाही की नींव रखने वाला कुली कुतुब शाह एक तुर्की था, जो पहले बहमनी साम्राज्य की सेना में रहा था। उसने गोलकुंडा (आज के तेलंगाना के इलाके में) से अपनी सल्तनत की शुरुआत कर दी। 1580 में गोलकुंडा पर मुहम्मद कुली कुतुब शाह का शासन आया। मुहम्मद को हैदराबाद शहर बसाने वाले सुल्तान के तौर पर जाना जाता है।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसको भागमती नाम की एक नाचने वाली से प्रेम हो गया था। उसी के नाम पर मुहम्मद ने भाग्यनगर शहर बसाया। भागमती ने बाद में इस्लाम कुबूल कर लिया था और उसका नाम हैदर महल हो गया था। इसी भाग्यनगर को बाद में हैदराबाद कहा जाने लगा। 1656 में गोलकुंडा पर भी मुगलों का पहला हमला हुआ। करीब 170 सालों के शासन के बाद 1687 में गोलकुंडा के किले पर औरंगजेब का कब्जा हो गया।

1658 से 1707 तक 49 साल मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन रहा। इस दौरान औरंगजेब ने लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर मुगल साम्राज्य कायम किया, लेकिन वह दक्कन के पहले मराठा शासक शिवाजी भोंसले को हराने में नाकाम रहा।

इतिहासकार नरहर कुरुंदकर कहते हैं-

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औरंगजेब ने कई मराठाओं को हराया, लेकिन वो खुद जीत नहीं सका।

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यही वह इलाका था जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी को रोके रखा। 19वीं सदी में जब पूरा भारत ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में जा चुका था, तब पुणे ने अपनी आजादी बचाकर रखी।

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‘महाराष्ट्र की कहानी’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में परसों यानी 26 अक्टूबर को पढ़िए- महाराष्ट्र में शिवाजी का वर्चस्व, पेशवाओं के शासन और अंग्रेजों के कब्जे की कहानी…



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