नई दिल्ली: दिल्ली की एक मद्दम रोशनी वाली आर्ट गैलरी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इतिहासकार स्वप्ना लिडल और एक गेस्ट स्पीकर के बीच बातचीत जारी है, ज्यादातर श्रोताओं के मन में बस एक ही सवाल था: स्वप्ना लिडल ने और क्यों नहीं बोला?
बातचीत के बीच में गेस्ट स्पीकर — जो शायद प्रशिक्षित इतिहासकार नहीं रहे होंगे — उन्होंने एक नौसिखिया गलती की. श्रोताओं में से अधिकांश इतिहासकार और इतिहास के छात्र थे, जिन्होंने अपनी सांस रोक ली.
लिडल ने धीरे से उन्हें टोका, उन्हें सही किया और एक मज़ाक के बाद उन्हें बोलने दिया. श्रोताओं को यह खूब पसंद आया.
स्वप्ना लिडल शहर की नई पहचान हैं — सटीक रूप से कहें तो लुटियंस दिल्ली की. पिछले एक साल में वे हर जगह रही हैं. बुक लॉन्च और प्रदर्शनी से लेकर सम्मेलनों तक, हर महत्वपूर्ण आमंत्रण पर उनका नाम होता है. वे मंच पर छा गई हैं और इतनी प्रसिद्ध हो गई हैं कि अधिकांश शिक्षाविदों को अकादमिक हलकों से परे नहीं मिलती और उन्होंने ट्रैपेज़ कलाकार की तरह इतिहास के बारे में खुलकर और खुशी से बोलने का काम किया है, बिना किसी परेशानी के. ऐसे समय में जब इतिहास एक परमाणु बहस है और इतिहासकार रेडियोधर्मी हैं, लिडल इस अनुशासन को आत्मविश्वास के साथ अपनाती हैं.
अकादमिक इतिहासकार सिद्धांतों का विश्लेषण और लेखन करते हैं, लेकिन हमें सार्वजनिक बातचीत की ज़रूरत है — हमें कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो जनता से जुड़ सके और उन्हें संदर्भों के साथ प्रामाणिक रूप से शिक्षित कर सके
— राणा सफवी, इतिहासकार
वे एक नए प्रकार की सार्वजनिक बुद्धिजीवी हैं: एक दृश्यमान इतिहासकार और विरासत संरक्षणकर्ता जो अपने शिल्प में सक्रिय रूप से लगी हुई हैं और इसे दिखाने से नहीं डरती हैं. वे शहर भर में इतिहास की सैर करती हैं, सोशल मीडिया पर रेगुलर पोस्ट करती हैं, कमेन्ट सेक्शन में लोगों से जुड़ती हैं और दिल्ली के इतिहास के बारे में किसी भी कार्यक्रम में मुख्य आधार होती हैं.
दिल्ली आर्ट गैलरी में उपस्थित लोगों के साथ स्वप्ना लिडल | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट
वे सहजता और शालीनता के साथ भौतिक और बौद्धिक दोनों जगहों के बीच घूमती हैं. लिडल खान मार्केट के एयर-कंडीशन वाले कैफे में उतनी ही सहज हैं जितनी चिलचिलाती धूप में स्मारकों पर अस्पष्ट शिलालेखों की ओर इशारा करते हुए.
उनका कैलेंडर पूरा भरा हुआ है: एक हफ्ते में ही उन्होंने गुरुग्राम में एक बुक क्लब में भाषण दिया, पुरानी दिल्ली में कथिका सांस्कृतिक केंद्र हवेली में इतिहासकार इरा मुखोटी के साथ एक पैनल में बैठीं, कोयंबटूर में ‘हिस्ट्री फॉर पीस’ सम्मेलन में स्कूली शिक्षकों को संबोधित किया और उक्त आर्ट गैलरी में एक संवाद की मेज़बानी की. इतिहासकार के लिए यह व्यस्तताओं का वक्त है.
उनकी लोकप्रियता इस तथ्य के बावजूद भी है कि वे अकादमिक क्षेत्र में नहीं हैं. विश्वविद्यालय की मांगों और अपेक्षाओं से बंधे न होने के कारण वे अपना सारा समय इतिहास की खोज और संरक्षण के लिए समर्पित कर पाती हैं, जिसमें उनकी अकादमिक पृष्ठभूमि प्रामाणिकता की मुहर के रूप में काम करती है.
मैं वही मानती हूं जो मुझे इतिहास लगता है — इतिहास और राजनीति एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन उस तरह से नहीं जिस तरह से ज़्यादातर लोग सोचते हैं. मैं इतिहास के ज़रिए बोलने की कोशिश करती हूं. बेशक, मेरे पास बाध्य न होने का सुख भी है और इससे मदद मिलती है
— स्वप्ना लिडल, इतिहासकार
इतिहासकार तनिका सरकार जिन्होंने 1989 में लिडल को दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज में ग्रेजुएशन के दौरान पढ़ाया था, ने कहा, “सार्वजनिक बुद्धिजीवी आमतौर पर अत्यंत ज़रूरी, बहुत संकीर्ण राजनीतिक मुद्दों को उठाते हैं और उन पर टिप्पणी करते हैं, लेकिन स्वप्ना का सार्वजनिक इतिहास भी कल्पना को उत्तेजित करता है और हमें उस समय को मूर्त, विशद, कामुक तरीके से देखने पर मजबूर करता है. वे राय के मौजूदा माहौल के खिलाफ जाने में सक्षम हैं और फिर भी विवाद में नहीं फंसती है — इस दौरान भी वे इतिहास को इस तरह से पेश करती हैं कि हर कोई उस पर प्रतिक्रिया दे सके.”
लिडल ने कहा, और कोई भी ऐसा काम नहीं करता है जो वे करती है, संभवतः इसलिए क्योंकि किसी और ने अभी तक कोशिश नहीं की है. उनके पास विशेषाधिकार और समय दोनों हैं. वे इस सुझाव को खारिज करती है कि वे अगली रोमिला थापर बनने की राह पर हैं.
उन्होंने हंसते हुए कहा, “बिल्कुल नहीं! रोमिला थापर एक बुद्धिजीवी हैं! मैं उस स्तर के आसपास भी होने का दिखावा नहीं करती और इसके अलावा मैं उस स्थिति में रहना पसंद नहीं करूंगी — एक उच्च मकाम पर होना और पहुंच से बाहर समझा जाना. मैं खुद को बहुत गंभीरता से नहीं लेती!”
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राजनीति से ज़्यादा इतिहास
स्वप्ना लिडल विरासत से ब्रेक लेना चाहती हैं. विरासत संरक्षण के बारे में बातचीत ही उनकी चिंता और तनाव का कारण है, न कि इतिहास.
यह एक काम है क्योंकि वे अक्सर विरासत संरक्षण से जुड़ी हुई हैं: सार्वजनिक क्षेत्र में उनका करियर उनकी विरासत यात्राओं से शुरू हुआ, जिसे उन्होंने 1990 के दशक के अंत में करना शुरू किया और फिर भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट (INTACH) में काम करते हुए इसे जारी रखा. यह वही है जिसने इतिहास में उनकी रुचि को ज़िंदा रखा. वॉक का संचालन करना और वॉक-लीडर को ट्रेनिंग देना INTACH में उनके काम का एक बड़ा हिस्सा था, जहां उन्होंने 2006 से सह-संयोजक और 2016 से 2021 तक संयोजक की तरह काम किया. अब वे इससे जुड़ी नहीं हैं, लेकिन फिर भी महीने में एक से दो वॉक करती हैं.
स्वप्ना लिडल, अपनी कीमती किताबों की अलमारी में से कुछ निकालती हुई | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट
उन्होंने आगे कहा, “वकालत INTACH के जनादेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह दबाव बढ़ता ही जाता है, लेकिन एक स्वैच्छिक संगठन के रूप में, आप केवल इतना ही कर सकते हैं. मेरी व्यक्तिगत क्षमता में मुझे लगा कि मैं इस क्षेत्र में उस तरह का प्रभाव नहीं डाल पा रही हूं जिससे मुझे संतुष्टि मिले. मेरी एनर्जी और टैलेंट कहीं और बेहतर तरीके से खर्च की जा सकती थी, जहां मेरा थोड़ा और प्रभाव हो. लेखन से मुझे अधिक संतुष्टि मिलती है और मैं हेरिटेज वॉक करना जारी रख सकती हूं.”
और जब वह हेरिटेज मैनेजमेंट की चुनौतियों के बारे में बात करती हैं, तो उनमें थकावट का भाव होता है, जो संभवतः सरकारी मशीनरी के साथ वर्षों तक चलने से उपजा है. वह अपने ग्रे और ब्राउन बालों को ठीक करती हैं, जो हमेशा उनके चेहरे से पीछे की ओर खींचे रहते हैं, अगला प्वाईंट बताने से पहले रुकती हैं.
जो चीज़ उन्हें संतुष्टि देती है, वह है इतिहास के साथ मूर्त तरीके से बातचीत करना. लिडल अपना फोन निकालती हैं और फेसबुक पर अपने कवर फोटो को स्क्रॉल करती हैं, जो सालों पहले की हैं. सीन उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है: यह इतिहास को जीवंत बनाने में मदद करती है.
उन्होंने हेरिटेज वॉक का ज़िक्र किया, “यह एक संयोग है कि मैंने यह करना शुरू किया.” जो अंततः उनके पेशेवर क्षेत्र में तब्दील हो गई. मुझे एहसास हुआ कि ऐसे लोगों से बात करने के लिए, जिनकी इतिहास में पृष्ठभूमि नहीं है, मुझे ऐसी भाषा में बात करनी होगी जिसे वे समझ सकें. मुझे सरल में बात करने की आदत हो गई, और वह लहज़ा और भाव मेरे लेखन में भी परिलक्षित हुआ.”
उनकी सुलभता ने उन्हें एक सार्वजनिक इतिहासकार की भूमिका में डाल दिया है, न कि एक अकादमिक इतिहासकार की — कोई ऐसा व्यक्ति जो मैदान पर दिखाई देता है, न कि केवल एक हाथीदांत टॉवर में.
इतिहासकार राणा सफवी ने कहा, “अकादमिक इतिहासकार सिद्धांतों का विश्लेषण और लेखन करते हैं, लेकिन हमें सार्वजनिक बातचीत की ज़रूरत है — हमें कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो जनता से जुड़ सके और उन्हें संदर्भों के साथ प्रामाणिक रूप से शिक्षित कर सके.”
उन्होंने कहा कि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लिडल की सूचनात्मक पोस्ट मिथकों को तोड़ती हैं. “वह जो भूमिका निभाती है वह जनता को सूचित करना है और एक सूचित जनता सही फैसला लेती है.”
2016 में लिडल ने अपने फेसबुक पेज पर हर हफ्ते एक तस्वीर पोस्ट करना शुरू किया, जिसमें उसका संदर्भ बताते हुए एक कैप्शन था — यमुना की पुरानी तस्वीरों से लेकर दिल्ली के छिपे हुए इलाकों की पेंटिंग तक. उन्होंने कहा कि यह ऐसा कंटेंट नहीं था जो वायरल हो जाए, लेकिन ऐसा था जो बातचीत को बढ़ावा दे सके.
और इतिहासकार के रूप में लिडल के अभ्यास का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यही है: दूसरों से जुड़ना. यह सिर्फ अतीत से जुड़ने के बारे में नहीं है, यह लोगों को आमंत्रित करने के बारे में है कि कैसे अतीत वर्तमान से जुड़ता है.
दिल्ली का इतिहास स्वाभाविक रूप से राजनीतिक है, खासकर तब जब विवादास्पद अतीत के विभिन्न पहलुओं को नए नैरेटिव में फिट करने के लिए लगातार परतों को उधेड़ा जाता है. अपनी वॉक के दौरान वे दिल्ली के विकास के तरीके में समन्वयवाद को इंगित करने की कोशिश करती हैं, लेकिन आज ऐसी अंतर्दृष्टि को कम लोग लेते हैं — जबकि इतिहास सूक्ष्म है, लोग चीज़ों को ब्लैक एंड व्हाईट में देखना पसंद करते हैं.
DAG द्वारा एक फोटो प्रदर्शनी में स्वप्ना लिडल | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
“लोगों की नज़रों में आने का एक नतीजा यह है कि ऐसी चीज़ों पर टिप्पणी करने का प्रलोभन होता है, जिस पर बोलने के लिए कोई सक्षम नहीं होता. उदाहरण के लिए कभी-कभी पत्रकार मुझसे टिप्पणी करने के लिए कहते हैं. मैं ऐसे मामलों में बिना सोचे-समझे टिप्पणी करने से सावधान रहती हूं — क्योंकि मैंने देखा है कि इससे कितना नुकसान हो सकता है. मैं जो कुछ भी कहती हूं, उसकी ज़िम्मेदारी मुझे लेनी होती है.”
लिडल के अनुसार, रोमिला थापर और इरफान हबीब जैसे दिग्गज इतिहासकारों को “प्रतिष्ठान” शिक्षाविद माना जाता है. हालांकि, आज के संदर्भ में ऐसा नहीं है.
उन्होंने कहा कि आज के शिक्षाविदों को कभी-कभी अपनी नौकरी बचाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और इसलिए वे सार्वजनिक बयान देने से कतराते हैं.
उन्होंने इस तथ्य का ज़िक्र करते हुए कहा कि एक स्वतंत्र विद्वान के रूप में, वे किसी विश्वविद्यालय जैसी संस्था से बंधी हुई नहीं हैं, “मैं जो सोचती हूं, इतिहास के लिए खड़ी रहती हूं — इतिहास और राजनीति एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन उस तरह से नहीं, जैसा कि ज़्यादातर लोग सोचते हैं. मैं इतिहास के ज़रिए बोलने की कोशिश करती हूं. बेशक, मेरे पास बाध्य न होने का सुख भी है और इससे मदद मिलती है.”
लिडल अतीत के बारे में उनके फैक्ट्स — किसी भी अन्य इतिहासकार की तरह — उनकी व्यक्तिगत भावनाओं से स्वतंत्र है. उन्होंने कहा कि अतीत में उन्हें जो कुछ भी मिला है, उसका उनकी राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ता. अगर उन्हें कट्टरता मिलती है, तो वे उसके बारे में बात करेंगी. अगर अतीत “खराब” था, तो वे आपको इसके बारे में बताएंगी.
उन्होंने कहा, “मैं कभी भी किसी बात का खंडन करने के लिए किताब नहीं लिखूंगी. मैं जिज्ञासा शुरू करती हूं और मुझे उम्मीद है कि खुले दिमाग से. कोई भी गंभीर इतिहासकार किसी तय राजनीतिक एजेंडे के साथ चीजें नहीं लिखेगा, हालांकि, हमारी राजनीति यह निर्धारित करती है कि हमें किस प्रश्न में रुचि है, हम जांच के कौन से रास्ते अपनाते हैं, जहां तक मेरी लेखन शैली का सवाल है, मैं एक कथात्मक शैली पसंद करती हूं, जहां मैं चीजों को सामने आने देती हूं. पाठकों के सामने तथ्य प्रस्तुत करती हूं और उन्हें अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करती हूं.”
उन्होंने कहा कि जो इतिहासकार राजनीतिक नैरेटिव की चापलूसी या उसे खुश करने की कोशिश करते हैं, वे गंभीर इतिहासकार नहीं हो सकते. हालांकि, कोई भी व्यक्ति जो आलोचनात्मक रूप से सोचता है, वह अराजनीतिक नहीं होता.
उन्होंने गंभीरता से कहा, “मैं इतिहास को आज की पहचान की राजनीति से अलग करना चाहती हूं.”
यह सवाल कि क्या यह वास्तव में संभव है — खासकर दिल्ली के बहुस्तरीय इतिहास को अपने विषय के रूप में देखते हुए — हवा में लटका है.
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अतीत के प्रति निरंतर जुनून
लिडल कभी भी इतिहास से अलग नहीं होतीं. दक्षिण दिल्ली के एक पॉश रिहायशी इलाके में स्थित उनके घर की दीवारों पर इतिहास की झलक दिखती है. उनके घर के बरामदे में, लोहे के छज्जों वाली घुमावदार सीढ़ियों के ठीक बगल में, कवि मीर तकी मीर का एक उर्दू दोहा ध्यान आकर्षित करता है:
दिल्ली के न थे कूचे, औराक-ए-मुस्सविर थे, जो शक्ल नज़र आई, तस्वीर नज़र आई.
स्वप्ना लिडल के घर की सीढ़ियों के पास कवि मीर तकी मीर का एक उर्दू दोहा | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट
लिडल इसी भावना के साथ जीती हैं और यह दिल्ली की पुरानी तस्वीरों और प्रिंटों में झलकती है, जिन्हें उनकी दीवार पर गर्व से सजाया गया है और लकड़ी की अलमारी में सावधानी से रखा गया है. यहां तक कि उनके शौक में पुरानी तस्वीरें और किताबें इकट्ठा करना भी शामिल है. भारतीय गणितज्ञ रामचंद्र की मैक्सिमा और मिनिमा की समस्याओं पर ग्रंथ का 1859 का पहला संस्करण एक बेशकीमती संपत्ति है, जो 19वीं सदी के अंग्रेज़ी लेखक लुईस कैरोल के पास थी.
स्वप्ना लिडल की मैक्सिमा और मिनिमा की प्रति के ऊपरी दाएं कोने पर लुईस कैरोल के हस्ताक्षर | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट
यह एक ऐसा शौक है जो वह अपने पति, अधिवक्ता गौरव बनर्जी के साथ साझा करती हैं. यहां तक कि उनकी बहन मधुलिका लिडल भी ऐतिहासिक कथाएं लिखती हैं. यह उनके निजी और सामाजिक जीवन का इतना बड़ा हिस्सा है कि वह कभी भी इससे बचना नहीं चाहतीं.
कुछ हद तक लोगों की नज़रों में रहने का एक नतीजा यह है कि ऐसी चीज़ों पर टिप्पणी करने का प्रलोभन होता है जिस पर बोलने के लिए कोई सक्षम नहीं होता. उदाहरण के लिए कभी-कभी पत्रकार मुझसे टिप्पणी करने के लिए कहते हैं. मैं ऐसे मामलों में बिना सोचे-समझे टिप्पणी करने से सावधान रहती हूं — क्योंकि मैंने देखा है कि इससे कितना नुकसान हो सकता है…मैं जो कुछ भी कहती हूं, उसकी ज़िम्मेदारी मुझे लेनी होती है
— स्वप्ना लिडल, इतिहासकार
स्वप्ना लिडल, रामचंद्र की ‘मेक्सिमा और मिनिमा की समस्याओं पर ग्रंथ’ का पहला संस्करण प्रदर्शित करती हुई, जो कभी लुईस कैरोल के पास थी | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट
सफवी ने कहा, “इस समय, उनके जैसे सार्वजनिक रूप से सामने आने वाले इतिहासकार बहुत महत्वपूर्ण हैं. स्वप्ना का व्यवहार भी शांत और ज्ञानपूर्ण है, यही वजह है कि लोग उनकी बातों को सुनते हैं. यहां तक कि जब मैं उन्हें बहस करते हुए देखती हूं, तो वे सभी सवालों का बहुत धैर्य के साथ जवाब देती हैं.”
लिडल की किताबें उसी तरह लिखी जाती हैं जैसे वे बोलती हैं: सुखद, प्रेरक, व्यक्तिगत उपाख्यानों से भरपूर. जब वे अतीत के बारे में कोई विरोधाभासी टिप्पणी करती हैं, तो उनकी भौंहें सिकुड़ जाती हैं — ठीक पहले वे हंसती हैं, अपने श्रोताओं को चुटकुले में आमंत्रित करती हैं, भले ही वह पूरा अर्थ न समझ पाएं.
वे पूरी ज़िंदगी इतिहास की छात्रा रहीं. सेंट स्टीफंस से ग्रेजुएशन करने के बाद, उन्होंने तुरंत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहां उन्होंने 1991 में मास्टर्स और 1995 में एमफिल किया. जब वे अपने पारिवारिक जीवन में ज़्यादा व्यस्त हो गईं, तो उन्होंने जेएनयू में पीएचडी प्रोग्राम बीच में छोड़ दिया और 2000 में जामिया मिलिया इस्लामिया में फिर से दाखिला लिया. पीएचडी पूरी करने में उन्हें सात साल लगे, जिसके तुरंत बाद उन्होंने INTACH के साथ काम करना शुरू कर दिया. उनकी हैरिटेज वॉक और लेखन भी जारी रहा, जिससे उन्हें इतिहासकार के रूप में अपनी आवाज़ विकसित करने के लिए जगह और समय मिला.
लिडल ने कहा कि यह आवाज़ उनकी राजनीतिक स्थिति से स्वतंत्र है. उदाहरण के लिए, उन्हें मुगलों को “आक्रमणकारी” कहने में समस्या है. यह गलत है.
उन्होंने कहा, “यह कहना अधिक सटीक होगा कि वह ‘विजेता’ हैं — या यूं कहें कि बाबर एक विजेता है. यह आक्रमणकारी होने से अलग है क्योंकि उस समय विजय आधुनिक लोकतंत्र की शुरुआत से बहुत पहले शासन परिवर्तन का एक वैध रूप था.”
लिडल के अनुसार, “मुगल” एक भ्रामक श्रेणी है क्योंकि उनका शासन सदियों तक फैला रहा और उन्हें एक ही ब्रश से पेंट नहीं किया जा सकता है.”
वह एक पल के लिए रुकती है. “इसके अलावा, उन्हें “विदेशी आक्रमणकारी” कहना सही नहीं होगा क्योंकि वे जल्द ही शब्द के कई अर्थों में “भारतीयकृत” हो गए. आप जानते हैं?” उन्होंने पूछा, ठीक हंसने से पहले, एक संपूर्ण अनैतिहासिक तर्क को खारिज करना उनकी हंसी में घुल गया.”
उन्होंने दृढ़ता से कहा, “मेरा मानना है कि इस विचार को अक्सर मुसलमानों पर सभी प्रकार के अपशब्दों को कहने के लिए आगे बढ़ाया जाता है और यह कुछ ऐसा है जिससे मैं घृणा करती हूं, लेकिन मुझे आज अपने राजनीतिक रुख का समर्थन करने के लिए इतिहास की ज़रूरत नहीं कि मुगल महान लोग थे — जो यह है कि इस देश में रहने वाले सभी लोगों के समान अधिकार हैं और उनके साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए.”
उनका राजनीतिक रुख यह है कि इतिहास का उपयोग आज के राजनीतिक रुख को सही ठहराने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. वे इतिहास को उसके वास्तविक रूप में पढ़ सकती हैं — और अगर वे सत्य असहज हैं, तो कोई बात नहीं.
सरकार ने कहा, “वे एक सार्वजनिक बुद्धिजीवी भी हैं क्योंकि मौजूदा स्थिति में मुसलमानों ने जो कुछ भी हासिल किया है, उसे बहुत क्रूरता से खारिज कर दिया जाता है और लोगों की याददाश्त से तेज़ी से मिटा दिया जाता है — चाहे वह किताबें हों या स्थानों के नाम. वे उस इतिहास को बहुत जीवंत और एक तरह से मानवीय बनाती हैं. यह उसके मूल्यों को जीवित रखता है.”
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अनुशासन का बचाव
स्वप्ना लिडल के घर की एक पूरी दीवार — जिसे वे ‘दिल्ली की दीवार’ कहती हैं — भारतीय राजधानी की पुरानी तस्वीरों और पेंटिंग्स से सजी हुई है.
इतिहास महत्वपूर्ण है, खासकर इसलिए क्योंकि राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए बहुत सारे अनैतिहासिक दावे किए जा रहे हैं
— स्वप्ना लिडल, इतिहासकार
यह दृश्यता उनके सोशल मीडिया पर आसानी से दिखाई देती है, जिसने उनकी पहुंच और दृश्यता को भी बढ़ाया है, लेकिन वे केवल इंस्टाग्राम और फेसबुक में ही दिलचस्पी रखती हैं — एक्स का मतलब गुस्से वाली प्रतिक्रियाएं और तीखी टिप्पणियां हैं, जो बात उन्हें उनके साथियों से अलग करती है, वह यह है कि उन्होंने खुद को दिल्ली के भीतर सीमित रखा है, लेकिन ऑनलाइन पेशे की रक्षक के रूप में उभरी हैं.
उन्होंने कहा, “मैं चाहती हूं कि लोग इतिहास को एक अनुशासन के रूप में अपनाएं. आज एक बुनियादी मुद्दा इतिहास को एक अनुशासन के रूप में जानबूझकर बदनाम करना है. अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि हम प्रशिक्षित इतिहासकारों द्वारा लिखे गए लेख नहीं पढ़ सकते क्योंकि वे आसानी से पढ़ी जाने वाली शैली में नहीं लिखते हैं. मुझे लगता है कि यह अनुचित है.”
दिल्ली में अपने घर में स्वप्ना लिडल. वे चिलचिलाती धूप में हेरिटेज वॉक आयोजित करने और स्मारकों पर शिलालेखों को डिकोड करने में उतनी ही सहज हैं | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट
उन्होंने बताया कि कई इतिहासकार हैं जो सुलभ शैली में लिखते हैं — और कोई भी यह नहीं कह रहा है कि विज्ञान को गंभीरता से लेने के लिए वैज्ञानिकों को अधिक सुलभ तरीके से लिखने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “मैं साथ ही, इतिहासकार ऐतिहासिक विषयों पर उन लोगों द्वारा लिखे गए लेखों को अनदेखा नहीं कर सकती, जो इतिहासकार के रूप में प्रशिक्षित नहीं हैं, लेकिन उनका बहुत प्रभाव है और जिन्हें व्यापक रूप से पढ़ा जाता है. अकादमिक विभाजन के दोनों पक्षों में जुड़ाव होना चाहिए.”
अनुशासन की रक्षा के लिए उनके मिशन का एक हिस्सा अपनी खुद की परियोजनाओं को आगे बढ़ाना है. वे समझती हैं कि सोशल मीडिया ने न केवल इतिहास के हमारे उपभोग को बदल दिया है, बल्कि इसने विरासत से जुड़े सौंदर्य मूल्य को भी बदल दिया है — यही वो जगह है जहां तस्वीरें खेल में आती हैं, खासकर युवा लोगों के बीच जब वे शहर की खोज करते हैं.
उन्होंने कहा, “आज सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप किसी चीज़ की सुंदर तस्वीर ले सकते हैं.”
सभी के लिए सुलभ एक लोकतांत्रिक डिजिटल संग्रह का निर्माण करना ऐसी ही एक प्रोजेक्ट है. पॉडकास्ट शुरू करना एक और बात है — पॉडकास्ट नहीं, उन्होंने कहा, जल्दी से खुद को सुधारते हुए, लेकिन एक लाइव स्ट्रीम जिसमें दर्शकों के लिए टिप्पणी करने और सवाल पूछने का एक तरीका हो. यह अधिक जुड़ाव पैदा करेगा.
उन्होंने अचानक गंभीर होते हुए कहा, “इतिहास महत्वपूर्ण है, खासकर इसलिए क्योंकि राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए बहुत सारे अनैतिहासिक दावे किए जा रहे हैं.”
उन्हें उम्मीद है कि उनका प्रक्षेपवक्र दूसरों के लिए एक आदर्श बन सकता है. इतिहासकारों को हमेशा अपने हाथी दांत के टावरों में बंद नहीं रहना पड़ता है, वे आस-पास के स्थानों में काम कर सकते हैं जैसा कि उन्होंने किया है. हिस्ट्री कलेक्टिव लोगों को विरासत, वकालत और ऐसे अन्य क्षेत्रों में जगह लेने के लिए प्रोत्साहित करने के इस प्रयास का हिस्सा है.
उन्होंने विशेष रूप से विरासत क्षेत्र का ज़िक्र करते हुए कहा, “यहां पर्याप्त इतिहासकार नहीं हैं. मैं ऐसे बहुत से लोगों के बारे में नहीं सोच सकती जो समान पदों पर हैं, जो इतिहासकार के रूप में प्रशिक्षित हैं और अब अन्य क्षेत्रों की तलाश कर रहे हैं. शायद उन्होंने कोशिश नहीं की है.”
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