Social Manthan

Search

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के शासन का वर्तमान और भविष्य



अफ़ग़ान महिला

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने महिलाओं के लिए कई सख्त क़ानून बनाए हैं.

21 अक्टूबर 2024, 16:59 IST

अफ़ग़ान महिलाएं गाना गाते हुए वीडियो ऑनलाइन पर पोस्ट कर रही हैं. यह उनके विरोध प्रदर्शन का एक तरीका है क्योंकि तालिबान ने महिलाओं की नैतिकता को नियंत्रित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं.

इसमें से एक निर्देश यह भी है कि सार्वजानिक जगहों पर महिलाओं की आवाज़ सुनाई नहीं देनी चाहिए. तीन साल पहले अफ़ग़ानिस्तान ने देश पर कब्ज़ा कर लिया था जिसके चलते हज़ारों लोग देश से भागने के लिए हवाईअड्डे की ओर निकल पड़े थे.

तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में सरकार तो बना ली, लेकिन चंद देशों ने ही उसे अभी तक मान्यता दी है.

उनकी सरकार को कोई ख़ास चुनौती नहीं है. रूस और चीन तालिबान को महत्वपूर्ण बैठकों में भी आमंत्रित करते हैं.

बीबीसी हिंदी का व्हाट्सऐप चैनलइमेज कैप्शन, बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

हाल में तालिबान ने सरकार के तीन साल पूरे होने का उत्सव मनाया और अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि उसने देश में शांति और सुरक्षा कायम की है.

हालांकि, आम अफ़ग़ानों को इस बात से राहत मिली है कि युद्ध बंद हो गया लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था ख़स्ता हालत में है. अफ़ग़ानिस्तान की आधे से अधिक आबादी को सहायता की ज़रूरत है.

तो इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन कैसा है?

छात्रों का युद्ध

अशरफ़ ग़नी

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, तालिबान के नियंत्रण के बाद अफ़ग़ानिस्तान से पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी भाग गए थे (फाइल फोटो)

पश्तो भाषा में तालिब का अर्थ होता है छात्र. तालिबान पहली बार 1990 के दशक में उभरे थे जब सोवियत सेना के अफ़ग़ानिस्तान से हटने के बाद देश के कबाइली नेताओँ में अंतरकलह छिड़ गया था.

एक्सेटर यूनिवर्सिटी में एडवांस्ड इंटरनेशनलिस्ट स्टडीज़ की सह निदेशक हैं डॉक्टर वीडा मेहरान, अफ़ग़ान हैं. वो बताती हैं कि नब्बे के दशक में मदरसों में धर्म की शिक्षा देने वाले शिक्षकों ने छात्रों को जनता पर अत्याचार करने वाले कबाइली नेताओं के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए प्रेरित किया. 1996 तक तालिबान ने देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा जमा लिया था.

“तालिबान का एक प्रमुख उद्देश्य इस्लामी शासन स्थापित करना रहा है. वो शरिया के नियमों का जो अर्थ लगाते हैं उसे उस प्रकार लागू करना चाहते हैं. जिस प्रकार के कानून तालिबान ने 1990 के दशक में थोपे थे वो उन्हें वो दोबारा लागू कर रहे हैं.”

पहली बार तालिबान का शासन अल्पकालिक था क्योंकि 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया था और उन्होंने दोबारा लड़ाई शुरू कर दी थी. उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 9/11 के हमलों में शामिल पांच संदिग्ध हमलावरों को शरण और सहायता दी थी.

अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओँ के साथ लगभग बीस साल युद्ध करने के बाद 2021 में तालिबान ने अमेरिकी समर्थन वाली सरकार को गिरा कर सत्ता हथिया ली. देश को कब्ज़े मे लेने के फ़ौरन बाद उन्होंने अपनी विचारधारा को देश में लागू करना शुरू कर दिया.

तालिबान

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, तालिबान के लोगों जनवरी 2022 की तस्वीर

डॉक्टर वीडा मेहरान ने कहा, “देश में अब लोकतंत्र नहीं बल्कि धर्मतंत्र है. तालिबान के नेतृत्व का ढांचा हायरार्की या वरीयता के आधार पर बना है जिसमें सबसे ऊपर हैं तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतउल्लाह अख़ुंदज़ादा. 2021 में दोबारा सत्ता मे आने के बाद उन्होंने तालेबान को सेंट्रलाइज़ कर दिया जिसके चलते प्रशासन के सभी विभागों में उनका प्रभाव कायम हो गया है.

वो नीतियां और निर्देश बना कर काबुल में मंत्रालयों को भेजते हैं और वहां से दूसरे राज्यों को उसके बारे सूचित किया जाता है. तालिबान का केंद्रीय नेतृत्व देश की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है.”

तालिबान ने पिछली सरकार के ढांचे को बरकरार रखा है जिसमें प्रमुख मंत्रालय और राज्यों के प्रशासनिक विभाग शामिल हैं. मगर डॉक्टर वीडा मेहरान का कहना है कि अधिकांश मंत्रालयों में तालिबान के धार्मिक नेताओं का दबदबा है और सिविल अधिकारियों के पास ख़ास अधिकार नहीं हैं.

वो मंत्रालय के धार्मिक नेताओं के आदेशों के अनुसार ही काम करते हैं. केवल अधिकारी ही नहीं बल्कि आम जनता के पास भी कोई अधिकार नहीं हैं. डॉक्टर वीडा मेहरान बताती हैं कि तालिबान के पास पुख़्ता ख़ुफ़िया तंत्र है और आम जनता पर पैनी नज़र रखी जाती है. जब भी लोगों ने सडकों पर आकर या सोशल मीडिया पर आवाज़ उठायी है तब तालिबान ने उन्हें ग़िरफ़्तार कर लिया है और कड़ा दंड दिया है.

औरतों के ख़िलाफ़ ख़ास तौर पर क्रूरता से कार्रवाई की गयी है. उन्हें ना केवल जेल में डाल कर पीटा गया है बल्कि उनके साथ यौन अत्याचार भी किया गया है. ऐसे में जब तालिबान देश में सुरक्षा कायम करने का दावा करता है तो डॉक्टर वीडा मेहरान उनसे एक सवाल पूछना चाहती हैं.

डॉक्टर वीडा मेहरान पूछती हैं, “ वो किसकी सुरक्षा की बात कर रहे हैं? क्या औरतों के लिए बाहर निकलना, पढ़ाई करना या नौकरी करना सुरक्षित है? बिल्कुल नहीं. क्या अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं? कतई नहीं. इसके अलावा आर्थिक दुर्दशा की वजह से आम अफ़गान जनता के लिए जीना मुश्किल हो गया है.”

प्रतिबंधों की मार

अफ़ग़ानिस्तान

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं तालिबान का विरोध करती रही हैं

तालिबान के सत्ता में आने के बाद पश्चिमी देशों ने अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ कई प्रतिबंध लगा दिए हैं. इसके तहत उसकी संपत्ति ज़ब्त कर ली गयी और अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग की सुविधाओं पर भी नियंत्रण लगा दिए गए. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप में एक वरिष्ठ विश्लेषक ग्रैहम स्मिथ कहते हैं कि अफ़गानिस्तान में ग़रीबी और प्रतिबंधों का सबसे बुरा असर महिलाओं पर पड़ रहा है.

“खाद्य सहायता केंद्र में काम करने वाले डॉक्टरों से पता चलता है कि लड़कों के मुकाबले लड़कियों की मृत्यु दर नब्बे प्रतिशत हैं. क्योंकि सांस्कृतिक सोच के चलते कई गरीब परिवार खाना खिलाने में लड़कियों के बजाय लड़कों को प्राथमिकता देते हैं. जब प्रतिबंधों का समर्थन करने वाले नीति निर्धारक कहते हैं कि वो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबंधों के ज़रिए तालिबान को सज़ा दे रहे हैं तो मैं उनसे कहता हूं कि असल में वो इससे अफ़ग़ानिस्तान को महिलाओं को चोट पहुंचा रहे हैं.”

ग्रैहम स्मिथ बताते हैं कि युद्ध के ख़त्म होते ही उससे जुड़ी अर्थव्यवस्था ठप हो गई. डीज़ल और दूसरी सप्लाई लाने वाले ट्रक कम हो गए, पुल और दूसरे ढांचे बनाने वाले श्रमिकों का काम बंद हो गया. वहीं दूसरे देशों से दवाई और आवश्यक सामग्री की सप्लाई पर भी प्रतिबंध है. साथ ही अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ बैंकिंग के प्रतिबंधों की वजह से उसके साथ व्यापार करना लगभग असंभव है.

पश्चिमी देशों से विकास कार्यों के लिए आने वाली सहायता बंद हो गयी जो पिछली सरकार के बजट का लगभग तीन चौथाई हिस्सा थी. तब यह चिंता व्यक्त की जा रही थी कि तालिबान के सत्ता मे आने के बाद सर्दी में लगभग दस लाख बच्चे भुखमरी का शिकार हो सकते हैं. मगर ग्रैहम स्मिथ कहते हैं कि तब से अर्थव्यवस्था में कुछ स्थिरता आयी है.

ग्रैहम स्मिथ का कहना है कि अर्थव्यवस्था ना बढ़ रही है ना सिकुड़ रही है. “विश्व बैंक का अनुमान है कि आने वाले तीन सालों मे अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संभावना नहीं है. कुछ चीज़ें बेहतर भी हुई हैं. तालिबान ने मूद्रा को स्थिर किया है और निर्यात बढ़ गया है. सरकारी आय पहले के मुकाबले बढ़ गयी है क्योंकि तालिबान ने कस्टम चेकपॉइंट पर भ्रष्टाचार ख़त्म कर दिया है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद मानवीय संकट टालने के सहायता एजेंसियों को अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता मिल रही थी जो अब बंद होती जा रही है.”

बिगड़ती अर्थव्यवस्था में सबसे बुरा असर अफ़ग़ानिस्तान के कृषि क्षेत्र पर हुआ है. ख़ास तौर पर देश की कुख़्यात अफ़ीम की खेती पर.

ग्रैहम स्मिथ के अनुसार अवैध अफ़ीम की खेती से जुड़े लगभग पांच लाख अफ़ग़ान किसान बेरोज़गार हो गए हैं क्योंकि तालिबान ने अपनी इस्लामी सोच के तहत अफ़ीम की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है. वो कहते हैं कि, “संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वहां अफ़ीम के पैदावार मे 95 प्रतिशत कमी आयी है. बाहरी लोग इसे पसंद कर रहे होंगे मगर किसानों के लिए इससे बड़ा संकट खड़ा हो गया है क्योंकि वो अचानक अफ़ीम की जगह गेंहू या दाल नहीं उगा सकते. उनकी लिए ज़िंदगी और मुश्किल हो गयी है.”

महिलाओं के रोज़गार पर भी बुरा असर पड़ा है क्योंकि तालिबान ने महिलाओं के सरकारी कार्यालयों सहित कई जगहों पर काम करने पर पाबंदी लगा दी है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं का रोज़गार 25 प्रतिशत घट गया है. ग्रैहम स्मिथ कहते हैं कि महिलाएं प्राइमरी स्कूलों में काम कर सकती हैं और उन्हें घर से व्यापार करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. मगर अकेले बाहर आने जाने पर दिक्कतों की वजह से उनके लिए काम करना मुश्किल है. तालिबान द्वारा लगाए गए कड़े नियमों की वजह से कई धनी अफ़ग़ान व्यापारी भी अफ़ग़ानिस्तान नहीं लौटना चाहते.

ग्रैहम स्मिथ ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान मे खनन उद्योग सहित कई उद्योगों में बड़े अवसर हैं लेकिन तुर्की या दुबई में रह रहे कई अफ़ग़ान उद्योगपति और व्यापारी अफ़ग़ानिस्तान नहीं लौटना चाहते. वो कहते हैं कि वो वहां अपनी बेटियां को स्कूल तक नहीं भेज पाएंगे और ना ही उनका कोई करियर बन पाएगा. मुझे लगता है कि तालिबान की नीतियों की वजह से व्यापारी और निवेशक अफ़ग़ानिस्तान से दूर चले गए हैं.”

पर्दे के पीछे की ताक़त

अफ़ग़ानिस्तान की डॉक्टर ओरज़ाला नेमत ओवरसीज़ डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में शोधकर्ता हैं.

उनका कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में सारे फ़ैसले तालिबान के प्रमुख और उनके सहयोगी करते हैं जो आम तौर लोगों के सामने नहीं आते या जब आते हैं तो उनका चेहरा ढंका होता है. “

“पर्दे के पीछे छिपी यह ताक़त दरअस्ल तालिबान के तथाकथित सुप्रीमो हेबतुल्लाह अख़ुंदज़दा हैं. कुछ वरिष्ठ नेताओं के अलावा किसी की उनसे मुलाक़ात नहीं हुई है. कभी वह किसी महत्वपूर्ण समारोह मे आते भी हैं तो अपना चेहरा ढंक लेते हैं या जनता की ओर पीठ कर के खड़े होते हैं. लेकिन समकालीन अफ़गानिस्तान के इतिहास में वो सबसे ताकतवर अफग़ान हैं क्योंकि उनके आदेश का पूरे देश में पालन किया जाता है.”

ओरज़ाला नेमत कहती हैं कि तालिबान ने सभी कानूनों को पश्चिमी विचार बता कर हटा दिया और देश के संविधान को दरकिनार कर के ऐसी न्याय प्रणाली कायम की है जो उनकी इस्लाम संबंधी अतिरूढीवादी और कठोर राय पर आधारित है. इसी के अनुसार अब तालिबान नेता के हस्ताक्षर वाली पर्चियों पर आदेश जारी किए जाते हैं. इसी के तहत नैतिकता संबंधों मामलों के लिए एक मंत्रालय बनाया गया है जो तय करता है कि समाज में क्या जायज़ है और क्या नाजायज़ है.

ओरज़ाला नेमत ने कहा, “इस मंत्रालय ने निर्देश दिए है कि मर्द और औरतें को किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिएं. उसने यह भी कहा है कि सामाजिक स्थानों पर महिलाओं की आवाज़ सुनाई नहीं देनी चाहिए. बाहर जाते समय उनका चेहरा ढंका होना चाहिए. यहां तक कि कोई टैक्सी ड्राइवर गाड़ी में ऐसी औरत को नहीं बिठा सकता जो अकेली हो. इससे औरतों के लिए कई मुश्किलें खड़ी हो रही हैं.”

तालिबान

नैतिकता संबंधी मंत्रालय ने कहा है कि उसके कर्मचारियों ने नियमों का उल्लंघन करने वाले हज़ारों लोगों को ग़िरफ़्तार किया है. मगर केवल यह मंत्रालय ही लोगों की नैतिकता नियंत्रित नहीं करता बल्कि दूसरे विभाग भी है.

डॉक्टर ओरज़ाला नेमत कहती हैं, “मोरालिटी पुलिस से भी ख़तरनाक जीडीआई यानी जनरल डायरेक्टोरेट ऑफ़ इंटेलिजेंस है जिसके पास लोगों को बिना किसी नोटिस के गिरफ्तार करने, यातना देने और यहां तक की मौत के घाट उतारने के अधिकार भी हैं.”

ओरज़ाला नेमत कहती हैं कि तालिबान के कानून और कड़े होते जा रहे हैं क्योंकि वो उनके ज़रिए लोगों को नियंत्रण में रख कर अपनी सरकार को सत्ता में बनाए रखना चाहते हैं और अशिक्षित कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ कर देश को अंधेरे की ओर ले जाना चाहते हैं.

नए संबंध

कुछ ही देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता दी है. वाशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता जावीद अहमद का मानना है कि यह भी सच है कि दुनिया के कई बड़े देश मानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ही सबसे बड़ी शक्ति है और उन्होंने किसी ना किसी स्तर पर तालिबान से संपर्क बनाए रखने की कोशिश की है.

“चीन ने उनके साथ तेल और गैस उद्योग में कुछ समझौते किए हैं. साथ ही उन्होंने तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान और कज़ाकस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों के साथ कूटनीतिक संपर्क स्थापित किए हैं. साथ ही रूस के साथ भी उन्होंने सपर्क बना रखा है. इसके अलावा कतर स्थित में उनके प्रतिनिधी यूरोपीय देशों के राजदूतों से मुलाक़ात करते हैं. साथ ही वो तुर्की, ईरान और पाकिस्तान भी आते जाते हैं. भले ही तालिबान के सहयोगी ना हों लेकिन दोस्त ज़रूर हैं.”

जावीद अहमद यह भी मानते हैं कि तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखना पश्चिमी देशों के हित में भी है क्योंकि तालिबान में कई धड़े हैं जिसमें अति कट्टरपंथी और कुछ उदारवादी और व्यापारी गुटों के समर्थक लोग भी हैं. भविष्य में यह संपर्क काम आ सकता है. अफ़ग़ानिस्तान को सबसे अधिक मानवीय सहायता अभी भी अमेरिका से मिलती है जो आम अफ़ग़ान लोगों के लिए बड़ी महत्वपूर्ण है.

जावीद अहमद की राय है कि इस सहायता से कुछ हद तक अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता सुनिश्चित होती है. उन्होंने कहा कि पिछले तीन सालों में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के ज़रिए 2.2 अरब डॉलर की मानवीय सहायता दी है. लेकिन इसका महत्व केवल पैसे में आंकना सही नहीं है. इस सहायता की वजह से अफ़ग़ानिस्तान ढहने से बच गया है.

भविष्य में तालिबान की विदेश नीति किस दिशा में जाएगी यह कहना मुश्किल है लेकिन जावीद अहमद कहते हैं कि तालिबान का शासन जितना लंबा चलेगा अफ़ग़ानिस्तान के लोगों कि मुश्किलें उतनी देर जारी रहेंगी.

जावीद अहमद ने कहा, “ अगर देश पर से तालिबान का नियंत्रण छूट जाता है और कोई दूसरा गुट भी नियंत्रण नहीं बना पाता तो और बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी. अगर तालिबान कमज़ोर पड़ता है तो क्षेत्र में चीन और रूस ही नहीं बल्कि विश्व के दूसरे हिस्सों में भी सुरक्षा संबंधी ख़तरे बढ़ सकते हैं. इस दौरान तालिबान अपनी कट्टरपंथी कठोर विचारधारा और तौर तरीकों को देश के आम लोगों पर थोंपता रहेगा.”

तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन कैसा है? हमारे एक्सपर्टों से उसकी मिलीजुली तस्वीर खींची दिखती है. ज़मीन पर सुरक्षा व्यवस्था बेहतर हुई है, तालिबान ने भ्रष्टाचार और ड्रग्स के अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए हैं और नये दोस्त भी बनाए हैं, वहीं अफ़ग़ानिस्तान मानवीय संकट की चपेट में फंसा हुआ है. साथ ही तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ भेदभाव करने वाले कठोर नियंत्रण लगा रखे हैं जिससे देश का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित



Source link

संबंधित आलेख

Read the Next Article

अमरावती: आंध्र प्रदेश में घटती जन्म दर को लेकर मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने राज्य की महिलाओं से जनसंख्या स्थिर करने के लिए कम से कम दो बच्चे पैदा करने की अपील की है. जबकि कांग्रेस की आंध्र प्रदेश इकाई में टिप्पणियों का स्वागत किया गया है, सत्तारूढ़ युवजन श्रमिका रयुथु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) ने … Read more

Read the Next Article

{“_id”:”671675af549b505bc2093f18″,”slug”:”bihar-news-cpi-ml-says-earlier-issue-of-politics-used-to-be-development-bjp-made-religion-an-issue-2024-10-21″,”type”:”story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Bihar News: ‘पहले राजनीति का मुद्दा विकास हुआ करता था, BJP ने धर्म को मुद्दा बना दिया’; भाकपा माले ने कहा”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}} बदलो बिहार न्याय यात्रा के दौरान भाकपा माले नेता धीरेंद्र झा तथा अन्य – फोटो : अमर उजाला विस्तार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा माले) का ‘बदलो बिहार न्याय यात्रा’ … Read more

Read the Next Article

महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने के लिए उत्तराखंड में महिला नीति लागू की गई है। यह नीति महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण पर केंद्रित होगी। एक नीति के रूप में नागरिक कानून की एकरूपता को भी मजबूत किया जाएगा। नीति के मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए काम तेज कर दिया गया … Read more

नवीनतम कहानियाँ​

Subscribe to our newsletter

We don’t spam!