मुजफ्फरपुर – विश्व नृत्य दिवस के अवसर पर साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि नृत्य सामाजिक जीवन में एकता का प्रतीक है. हर साल 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो नृत्य के जादूगर कहे जाने वाले जॉर्जेस नोवरे को समर्पित है। नृत्य दुनिया भर में लोकप्रिय है, न केवल मनोरंजन के साधन के रूप में, बल्कि कला और संस्कृति को भावनात्मक रूप से व्यक्त करने और स्वस्थ रहने के माध्यम के रूप में भी।
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अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 को इंटरनेशनल थिएटर एसोसिएशन की अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समिति द्वारा की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य आयोग संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को का एक गैर-सरकारी संगठन है। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस, वैली के पिता, नृत्य जादूगर जीन-जॉर्जेस नोवरे का जन्म 29 अप्रैल, 1727 को हुआ था। नृत्य समिति ने जॉर्जेस नॉवर्ट के जन्मदिन, 29 अप्रैल, 1982 को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
नृत्य के बारे में सब कुछ “लेटर्स ऑन द डांस” पुस्तक में लिखा गया है। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस का उद्देश्य न केवल दुनिया भर के नर्तकियों को प्रोत्साहित करना है, बल्कि लोगों को नृत्य के लाभों के बारे में शिक्षित करना भी है। नृत्य कला के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद को बढ़ावा मिलता है। इससे समृद्धि और एकता का वातावरण बनता है। अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के अवसर पर स्वनिम कला केंद्र अध्यक्ष ने कहा कि नृत्य सामाजिक एकता और संस्कृति को बढ़ावा देकर प्राचीन संस्कृति की रक्षा करता है।
बिहार की संस्कृति की पहचान डोमकच, चकेवा, शोहट, होली, सोहर, विवाह नृत्य जैसे नृत्य यहां की सांस्कृतिक विरासत की पहचान हैं। स्वर्णिम कला केंद्र परिसर में केंद्र के कलाकारों ने जजिया, जोमर, सामाचकेवा, कजरी जात जतिन आदि की प्रस्तुति दी। आशिता राज, इशी रानी, अंजलि कुमारी दीक्षा कुमारी, श्वेता श्रीवास्तव, हिमांशी वर्मा व अन्य ने नृत्य प्रस्तुत किया.
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