“स्टार्टअप स्कैंडल्स: भारत के टेक बूम का काला चेहरा”
भारत में टेक बूम की सुनामी ने जहां एक ओर नवोन्मेष और उद्यमिता की नई कहानियाँ लिखी हैं, वहीं दूसरी ओर इसने कुछ ‘अजब-गजब’ स्कैंडल्स को भी जन्म दिया है। अब, ये स्टार्टअप्स मानो कोई बॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट बन गए हैं, जहां हर दिन कुछ नया ट्विस्ट और तड़का देखने को मिलता है।
शुरुआत करते हैं ‘फंडिंग की महाभारत’ से, जहां इन्वेस्टर्स का पैसा मानो गंगा नदी की तरह बहता है, और स्टार्टअप्स इसे ‘अच्छे दिनों’ का आशीर्वाद समझकर खुशियों में डूब जाते हैं। लेकिन जब ‘अच्छे दिन’ धीरे-धीरे ‘सच्चे दिन’ में बदलते हैं, तब सामने आती है असली कहानी।
फिर आते हैं ‘वैल्यूएशन के वीर योद्धा’, जिनकी कंपनियाँ कागज पर तो अरबों की मालिक होती हैं, लेकिन असलियत में इनका बिजनेस मॉडल कभी-कभी ‘झूले पर झूला’ जैसा होता है। इनके ‘उड़ान भरने’ के किस्से सुनकर तो लगता है मानो ये स्टार्टअप नहीं, ‘अलादीन का चिराग’ हों।
और कैसे भूल सकते हैं ‘स्कैंडल्स के सुल्तान’ को, जहां एक के बाद एक खुलासे ऐसे होते हैं, मानो डेली सोप का कोई एपिसोड चल रहा हो। कभी फाइनेंशियल गड़बड़ियाँ, तो कभी कॉर्पोरेट
गवर्नेंस की चूक, ये स्टार्टअप्स ‘कंट्रोवर्सी किंग्स’ की तरह राज करते हैं।
अंत में, ‘एथिकल डायलेमास’ की चर्चा तो बनती ही है, जहां स्टार्टअप्स ‘नैतिकता की पाठशाला’ में अक्सर अनुपस्थित पाए जाते हैं। इनके लिए ‘सफलता की सीढ़ी’ पर चढ़ना ही सब कुछ होता है, चाहे वो सीढ़ी किसी की ‘पीठ’ पर क्यों न रखी गई हो।
तो, यह थी हमारे ‘भारतीय टेक बूम’ की अनसुनी कहानियाँ, जहां सपने भी हैं, स्कैंडल्स भी, और बीच-बीच में ‘नैतिकता’ की चुटकी भी।