मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो वीके जैन ने वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के महत्व को बताते हुए हिंदी, संस्कृत और गुरुकुल शिक्षा को भारतीय संस्कृति की त्रिमूर्ति बताते हुए कहा कि इसे नकारा नहीं जा सकता. आध्यात्मिक ज्ञान और मन की शांति केवल गुरुकुल शिक्षा से ही प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने भक्त के छह कर्तव्यों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला: दान कार्य करना, ज्ञान, कर्म, विचार, कर्म, शिक्षा आदि प्रदान करना।
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उन्होंने कहा कि हिंदी और संस्कृत एक दूसरे के पूरक हैं, एक दूसरे के बिना ये अधूरे हैं और इनके बिना हम अधूरे हैं. हमें भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ गुणों को आत्मसात करने की जरूरत है।
मैं एक छोटे पैमाने की चोरी करने आया था… मुझे नोटों के इतने सारे बंडल मिले कि मुझे उन्हें बंडल करके अपने सिर पर रखना पड़ा।फिर भी, सैकड़ों-हजारों लोग पीछे रह गये।
उन्होंने यह भी कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा और गुरुकुल प्रणाली से व्यक्तित्व का 360 डिग्री विकास होता है। प्रोफेसर जैन तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली केंद्र की ओर से भारतीय ज्ञान परंपरा के तहत अमृत वचनम् में आयोजित कार्यशाला में सम्मानित अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
इससे पहले विशिष्ट अतिथि के रूप में कुलपति प्रो. वीके जैन, विशिष्ट अतिथि प्रो. महावीर अग्रवाल, पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रो वेंचर कैपिटलिस्ट प्रो. प्रभु नारायण मिश्र, आईएमएस, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के पूर्व निदेशक प्रो. अनुपम जैन थे। मुख्य वक्ता के रूप में टीएमयू आईकेएस और कार्यशाला समन्वयक डॉ. अलका अग्रवाल ने संयुक्त रूप से मां सरस्वती के समक्ष दीप जलाकर कार्यशाला का उद्घाटन किया।
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कार्यक्रम में शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो. मंजुला जैन, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. एमपी सिंह, संयुक्त रजिस्ट्रार सामान्य प्रबंधन प्रो. प्रो. अलका अग्रवाल एवं अन्य ने गरिमामय उपस्थिति दी। इस अवसर पर सभी अतिथियों को फूलों का गुलदस्ता भेंट कर जोरदार स्वागत किया गया। अंत में उन्हें स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। अध्ययन का संचालन उप निदेशक अकादमिक नेहा आनंद द्वारा किया गया।
मुख्य वक्ता के रूप में पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रोफेसर महावीर अग्रवाल ने वेदों के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि वेद सामाजिक और मानवीय मूल्यों को बताने वाले और दुनिया भर में इंसानों को इंसान बनाने वाले ग्रंथ हैं . वेदों से ही सभी वर्गों का कल्याण हो सकता है। मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? मेरा उद्देश्य क्या है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर केवल वेदों से ही मिल सकता है। इतना ही नहीं, हजारों वर्षों के बाद भी वैदिक व्याकरण और भाषा अपरिवर्तित है। उन्होंने वेदों को ज्ञान का विशाल भंडार बताया और कहा कि वेद धर्म पर आधारित नहीं हैं।
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वेद स्वस्थ जीवन शैली का दर्पण हैं। शिक्षा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद यदि किसी व्यक्ति के मन में घृणा की भावना आती है तो वह शिक्षा अधूरी है। अंत में उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति, मूल्यों और सोचने के तरीकों को कभी नहीं भूलना चाहिए। शिक्षा की गिरावट और शिक्षा के महत्व पर चर्चा करते हुए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के पूर्व आईएमएस निदेशक प्रोफेसर प्रभु नारायण मिश्रा ने कहा कि आज वेदों को समझना मुश्किल है क्योंकि भाषा वैदिक संस्कृत बताई गई है। इनकी आवाज भी अलग होती है.
उन्होंने प्रबंधन प्रणाली, आंतरिक शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता पर जोर दिया और उस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधनों के बारे में विस्तृत जानकारी भी प्रदान की। उन्होंने लोगों से कम से कम एक प्रमुख धर्मग्रंथ में रुचि लेने, अध्ययन करने और उसे आत्मसात करने का आह्वान किया। उन्होंने राम-रावण युद्ध के माध्यम से कुशल प्रबंधन की व्याख्या की। उन्होंने रामचरित्र मानस की चौपाइयों का भी परामर्श लिया। उन्होंने कहा कि युद्ध के मैदान में साहस और धैर्य के साथ-साथ शक्ति और बुद्धि के संतुलन की भी आवश्यकता होती है।
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टीएमयू आईकेएस के प्रोफेसर अनुपम जैन ने भारतीय गणित और प्रख्यात विद्वानों पर चर्चा करते हुए कहा कि आर्यभट्ट और वराहमिहिल ने भारतीय गणित में उत्कृष्ट योगदान दिया है। उन्होंने भारत की बौद्धिक परंपरा में गणित के महत्व को समझाते हुए कहा कि हमारी अधिकांश पांडुलिपियां ताड़ के पत्तों पर लिखी गई हैं। लगभग 1 अरब पांडुलिपियाँ अस्तित्व में हैं, जिनमें से 30% जैन पांडुलिपियाँ हैं। अत: भारतीय ज्ञान परंपरा को गणित के बिना नहीं समझा जा सकता। कार्यक्रम संयोजिका डॉ. अलका अग्रवाल ने भारत की ज्ञान परंपरा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि भारत प्रारंभ से ही प्राचीन मूल्यों का केंद्र रहा है।
भारतीय ज्ञान परंपरा सत्य को पहचानती है। भारत में ज्ञान को संरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि ज्ञान कभी पुराना नहीं होता। डॉ. विवेक पाठक, डॉ. अमीषा सिंह, प्रो. मुकेश शिकरवार, डॉ. योगेश कुमार, डॉ. सुगंधा जैन, डॉ. केएम मालवीय, डॉ. शिप्रा, डॉ. कामेश कुमार, डॉ. आलोक गहलोत, डॉ. साक्षी बिष्ट, डॉ. कार्यशाला में प्राची सिंह, पिनाकी अदक, अंकित मुल्तानी, ज्योति शर्मा व अन्य शामिल हुए.